Sadhana Shahi

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कोई काम छोटा नहीं (कहानी) स्वैच्छिक प्रतियोगिता हेतु27-Mar-2024

दिनांक- 27,0 3 ,2024 दिवस- बुधवार विषय- कोई काम छोटा नहीं

मोहन रुस्तमपुर गांँव के पब्लिक स्कूल में पढ़ता था। वह स्कूल शहर के एक महंँगे स्कूल में आता था। जिसमें बहुत बड़े-बड़े घरों के बच्चे ही पढ़ते थे। मोहन के पिता एक सब्जी विक्रेता थे। किंतु विद्यालय में मोहन अपने मित्रों, शिक्षक- शिक्षिकाओं को कभी भी यह नहीं बताया कि उसके पिताजी एक सब्जी विक्रेता हैं ।वह हमेशा सबको बताता था कि उसके पिता एक बहुत बड़े व्यापारी हैं। मोहन जैसे-जैसे उच्च कक्षा में आता गया वैसे-वैसे वह पढ़ने में कमज़ोर होता गया। क्योंकि उसके घर की आर्थिक स्थिति अच्छी होने तथा माता- पिता के पढ़े-लिखे न होने के कारण घर में कोई भी उसके ऊपर ध्यान नहीं दे पता था।

उसके सारे विषय के शिक्षक उसकी शिकायत प्रधानाचार्य से करने लगे। एक दिन प्रधानाचार्य ने उसे अपने ऑफिस में बुलाया और उससे कहा कि तुम्हारे पिता कभी भी किसी पी.टी.एम में नहीं आते हैं ,न पी.टी.एम के बाद ही कभी मिलने आते हैं। तुम्हारी पढ़ाई- लिखाई दिन पर दिन कमज़ोर होते जा रही है। कल तुम अपने पिता को लेकर आना अन्यथा स्कूल नहीं आना।

अब मोहन घर जाकर बड़ा ही उदास हो गया। क्योंकि उसने झूठ बोला था कि उसके पिता एक बहुत बड़े व्यापारी हैं। शाम को जब उसके पिता काम से लौटे तो उसे उदास देखकर उससे उसकी उदासी का कारण पूछने लगे, तब उसने अपने पिता को सारी बातें बता दिया।

उसके पिता ने कहा, बेटा! तुमने झूठ क्यों बोला? मैं तो एक सामान्य सा सब्ज़ी विक्रेता हूंँ मेरे पास तो अच्छे कपड़े तक नहीं हैं। तब मोहन ने कहा, पिताजी आप अंकल से कपड़े मांँग लीजिएगा। लेकिन आप स्कल एक बिजनेसमैन ही बनकर चलियेगा।

मोहन के कहने पर उसके पिता ने उसके पास से एक अंकल से अच्छे कपड़े उधार मांँग लिए और उसे पहनकर वो विद्यालय में प्रधानाचार्य से मिलने के लिए गए। ऑफिस में उसके दो विषय शिक्षक और प्रधानाचार्य पहले से मौजूद थे। वो लोग मोहन के पिता को मोहन के बारे में बताने लगे। चूँकि स्कूल एक उच्च मानक स्कूल था अतः शिक्षक 60 से 70% इंग्लिश बोल रहे थे। जो कि मोहन के पिता को समझ में नहीं आ रहा था। और 5,7 मिनट के वार्तालाप के पश्चात मोहन के प्रधानाचार्य ने मोहन को ऑफिस के बाहर जाने को कहा। जब मोहन ऑफिस के बाहर गया तब प्रधानाचार्य ने उसके पिता से कहा आप कभी भी पी.टी.एम में नहीं आते हैं, न अपने बच्चे का ख़्याल रखते हैं। आपका बच्चा डे बाई डे पढ़ने में वीक होता चला जा रहा है। यदि अलर्ट नहीं हुए तो आने वाले टाइम में यह अपनी पढ़ाई को कांटीन्यू नहीं कर पाएगा।तब मोहन के पिता ने कहा, कृपया आप लोग मुझसे हिंदी में बात करिए, क्योंकि मुझे अंग्रेज़ी बिल्कुल भी नहीं आती।

मोहन के पिता के मुंँह से इस तरह की बात सुनकर प्रधानाचार्य तथा शिक्षक सभी अवाक् रह गए। सब मोहन के पिता का मुंँह देखने लगे। तब मोहन के पिता ने हाथ जोड़कर कहा दरअसल मैं कोई बड़ा बिजनेसमैन नहीं हूँ मैं एक मामूली सा सब्ज़ी विक्रेता हूंँ। मेरे बेटे ने आप लोगों से झूठ बोला था। उसकी झूठ के लिए मैं आप लोगों से माफ़ी मांँगता हूंँ।

तब प्रिंसिपल ने मोहन के पिता से कहा लेकिन उसे झूठ बोलने की क्या आवश्यकता थी? वह सच भी तो बोल सकता था न।तब मोहन के पिता ने कहा दरअसल उसे डर था कि जब स्कूल के बच्चे तथा शिक्षक यह जानेंगे कि वह एक सब्ज़ी विक्रेता का बच्चा है तो उसका मज़ाक उड़ाएंँगे। उससे कोई सही तरीके से बात नहीं करेगा, उससे कोई मित्रता नहीं करेगा।

तब प्रिंसिपल ने कहा, ऐसा कुछ भी नहीं है । मैं मोहन को समझाऊंँगा। उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था। झूठ की ज़िंदगी छोटी होती है। एक न एक दिन सच्चाई सामने आती ही है। अतः उसे झूठ बोलना अपनी आदत में शामिल नहीं करना चाहिए। बल्कि खुद को बड़ा बनाने का प्रयास करना चाहिए।कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता है। आख़िर आप सब्ज़ी बेचकर ही तो अपने परिवार का पालन-पोषण कर रहे हैं।

उन्होंने मोहन को ऑफिस में बुलाया और मोहन से पूछा,बेटा तुमने झूठ क्यों बोला? तुमने अपने पिता के काम को क्यों छुपाया? मोहन कुछ भी बोल नहीं पा रहा था‌। और सिर्फ सर लटकाए खड़ा था। तब प्रधानाचार्य ने बताया मोहन क्या तुम जानते हो मैं कैसे घर से संबंध रखता हूंँ? मेरे पिता एक विद्यालय में चपरासी थे जो कि विद्यालय में ही एक कमरा मिला हुआ था उसी में हमारी मांँ और हमारे साथ रहते थे। पूरे विद्यालय के साफ़- सफ़ाई देख-रेख करते थे। मैं उसी विद्यालय में कक्षा 12वीं तक पढ़ा। क्योंकि मैं पढ़ने में अच्छा था अतः मेरी फ़ीस नहीं लगती थी। इसलिए मैं 12वीं तक बिना किसी व्यवधान के अच्छी तरह से अपनी पढ़ाई पूरी कर लिया। किंतु आगे की पढ़ाई के लिए मुझे लोन लेना पड़ा। उसके बाद मैं लोन लेकर के पढ़ाई किया और आज देखो मैं प्रधानाचार्य की कुर्सी पर बैठा हुआ हूँ। मुझे अपने पिता के काम पर कोई शर्म नहीं है‌ उल्टा मुझे तो गर्व है कि मेरे पिता एक चपरासी होकर भी मुझे इतनी अच्छी शिक्षा- दीक्षा दिलाए कि मैं प्रधानाचार्य बन कर बैठा हूंँ, और मेरे पिता को भी मुझ पर गर्व है की एक मामूली से चपरासी होते हुए भी उन्होंने मुझे इस मुकाम तक पहुंँचाया।

तो बेटा मोहन! कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता। हर इंसान को अपने काम को ईमानदारी से करना चाहिए और अब यह तुम्हारा कर्तव्य है कि तुम अपने पिता के परिश्रम को जाया न जाने दो। मेहनत से पढ़ो और एक दिन मेरी तरह ऊँचे मुकाम पर पहुंँचकर अपने पिता के परिश्रम के साथ इंसाफ़ करो।

सीख- कोई काम छोटा बड़ा नहीं होता। हमें अपने काम को ईमानदारी से करना चाहिए और बच्चों को चाहिए कि अपने माता-पिता के परिश्रम का मान सम्मान करें और एक दिन स्वयं प्रतिष्ठित होकर अपने माता-पिता को भी प्रतिष्ठित करें।

साधना शाही, वाराणसी

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4 Comments

Mohammed urooj khan

01-Apr-2024 02:04 PM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

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Gunjan Kamal

30-Mar-2024 10:27 PM

शानदार

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Varsha_Upadhyay

30-Mar-2024 12:02 AM

Nice

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